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Showing posts from November, 2011

Letter from father to son - GD Birla's Letter to his Son Basant on power and utility of wealth.

पिता का पत्र, पुत्र के नाम ची बसन्त, यह जो लिखता हुं उसे बडे होकर बुढे होकर भी पढना, अपने अनुभव की बात करता हुं| संसार मे मनुष्य जन्म दुरलभ है| यह सच्च बात है| और मनुष्य जन्म पाकर जिसने शरीर का दुर्उयोग कीया वह पशु है| तुमहारे पास धन है अच्छे साधन है, उसका सेवा के लीये उपयोग किया तब तो साधन संभव है अन्यथा वह शैतान के औझार है| तुम इतनी बातो का धयान रखना: 1. धन को मौज शौख मे कभी उपयोग ना करना| रावन ने मौज शौख की थी | जनक ने सेवा की थी | धन सदा रहेगा भी नही, इसलीये जितने दिन पास मे है उसका उपयोग सेवा के लिये करो| अपने उपर कम खर्च करो बाकी दुखियो का दुख दूर करने मे वय्य करो| 2. धन शकति है| इस शकति के नशे मे किसि के साथ अन्याय हो जाना संभव है, इस का धयान रखो| 3. अपनि संतान के लिये यही उपदेश छोडकर जाओ| यदी बच्चे ऐश आराम वाले होंगे तो, पाप करेगे ओर व्यापार चौपट करेगे| ऐसे नालायको को धन कभी न देना, उनके हाथ मे धन आये उससे पहेले उसे गरीबो मे बांट देना| हम भाइओने व्यापार को बढाया है तो यह समझकर कि तुम लोग धन का सदुपयोग करोगे| 4. सदा यह याद रखना के तुमहारा धन यह जनता की धरोहर है| तुम उसे अपन